Monday, August 10, 2009

नमस्कार :

आपने भूतों की कहानी सुनी होगी या फिर फिल्मो में देखा होगा क्या कभी आपने महसूस किया हैं की कोई आत्मा हमारे आस पास हो और हमे कुछ कहना चाह रही हो जी हां मैंने अपने अन्दर महसूस किया हैं की कोई आत्मा मेरे पास खड़ी है और वो मुझसे कुछ कहना चाह रही हो मैंने चारो और देखा कुछ भी नज़र नही आया लेकिन जब में चलने लगा तो मुझे लगा कोई मेरे साथ साथ चल रहा हो जैसे कोई हवा मेरे कानो में गुन गुना रही हो ये घटना मेरे मेरे गांव से किलोमीटर के पास की हैं जहा आज से ५०० साल पहले शाहजहाँ दिल्ली से अजमेर ख्वाजा के जा रहा था शाहजहांपुर नामक गांव में शाहजहाँ और उसके साथियों ने विश्राम किया था रात को जब शाहजहाँ और उनके साथी सो रहे थे तब कुछ लूटेरो ने उनके माल को लूटना चाहा जब राजा जगा तो उन्होंने आपने सैनिको को आदेश दिया की सभी का कतल कर दिया जाए जिसमे लूटेरे तो भाग गए लेकिन बेगुनाह लोग मारे गए 'तब ये गांव लूटेरो से घिरा हुआ था शाहजहाँ ने गांव के बीचो बिच एक कुए का निर्माण करवाया और वह अपने नाम से इस का नाम रखा पहले के लोग हमेसा दूर के देसों को पुर के निवासी पुकार के कहते थे शाहजहाँ ने जब इसका नाम शाहजहा रखतो लोगो ने पुर लगा के शाहजहांपुर रख दिया धीरे धीरे यहाँ लोग बसने लगे लेकिन जहा से शाहजहाँ की सवारी गुजरती थी वहा एक रात गांव वालो ने सुना की जैसे किसी कार्य का निर्माण हो रहा हो पहले के लोग सुबह ही चाकी चला देते थे जो कार्य हो रहा था वो सुबह चार बजे बंद हो गया सुबह गांव वाले इधर उधर काम की तलाश में जाते हैं तो लोगो ने देखा की कल रात तक तो यहाँ कुछ भी नही था एक रात में ये क्या खड़ा हो गया गांव वालो ने सोचा सायद शाहजहाँ ने बनवा दिया होगा कई लोगो ने अन्दर जाके देखा तो कोई भी बहार नही आया सभी उस जगह पे जाने से डरने लगे कोई भी उस रास्ते की तरफ नही जाता लोग उसे देखने में भी कतराने लगे कई साल बीत जाने के बाद राजा भी उस रास्ते से आया उन्होंने देखा की मेरे राज्य में किस की हिम्मत हो गई जिसने ये मीनार नुमा महल बनवया हैं राजा ने क्रोध में आकर उसे तोड़ने का उकुम दे दिया लेकिन अन्दर से इतना घहरा था की सारे सैनिक उसी के नीचे दबकर मिट्टी हो गए तब राजा को एक क्रोध भरी आवाज आई जो हमेश उसे शुनाई देती थी राजा ने पुचा कोण हो तुम तब उस आवाज ने बता या की आज से साल पहले में और प्रियतम इस जंगले से गुजर रहे थे तब तुमने मेरे शोहर को बंदीऔर मुझे ज़हर खाने पर मजबूर कर दिया था घुस्से में उसने राज को श्राप दिया था जैसे मेरी मौत पे मेरा शोहर मुझसे मिलने के लिए तड़फ रहा हैं वैसे ही तू भी तेरी महबूबा के लिए तरसेगा और उस लड़की की आत्मा आज भी उन हसीं वादियों में ऐसे गूंजती हैं जैसे कोई साथी अपने बिछडे प्रीत को बुला रहा हो आज भी वो आत्मा उसकी के आस पास भटकती हैं लेकिन किसी को नुक्सान नही पहुचाती उसकी चाहत के चर्चे आज भी उस गांव में होते रहते हैं